कॉकलियर इंप्लांट या कान की मशीन? बहतर क्या?

बहरेपन या कान से कम सुनाई देने से पीड़ित प्रत्येक व्यक्ति ने किसी न किसी समय इस मुद्दे का सामना किया है कि उनके लिए कॉकलियर इंप्लांट या कान की मशीन में से बेहतर विकल्प कौनसा है। जो लोग श्रवण बाधिता के क्षेत्र में हो रहे नवीनतम अनुसंधान व शोध कार्य से अवगत हैं, वे अपनी कान से कम सुनाई देने की समस्या का सबसे अच्छा समाधान चाहते हैं।

सुनने के उपकरण का विकल्प मुख्य रूप से चिकित्सा रिपोर्ट और रोगी की सुनने की प्रतिक्रिया पर आधारित है। कान का डॉक्टर और ऑडियोलॉजिस्ट इस सवाल का जवाब देने के लिए सबसे विश्वसनीय पात्र हैं। वे रिपोर्ट का मूल्यांकन करते हैं और कॉकलियर इंप्लांट या कान की मशीन की उपयुक्तता पर निर्णय लेते हैं। निर्णय का एक प्रमुख कारक रोगी को प्रभावित करने वाली भिन्न बहरेपन के प्रकार हैं।

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कॉकलियर इंप्लांट या कान की मशीन? आइए जानते हैं।

दोनों ही उपकरण उपयोगकर्ता को बेहतर सुनने में मदद करते हैं। यह सलाह दी जाती है कि पाठक एक कॉकलियर इंप्लांट और एक कान की मशीन के बीच बुनियादी अंतर को समझें जिससे वे सही उपकरण का चुनाव कर पाएँ।

कॉकलियर इंप्लांट कैसे काम करता है?

कॉकलियर इंप्लांट एक बाहरी माइक्रोफोन के माध्यम से ध्वनि उठाता है। साउंड प्रोसेसर (ध्वनि प्रक्रमक) इन ध्वनि तरंगों को विद्युत संकेतों में परिवर्तित करता है। ये संकेत आंतरिक कान या कोक्लीअ तक पहुंचते हैं। प्रक्रिया को समझने के लिए कॉकलियर इंप्लांट क्या है? और कैसे काम करता हैं? इस आलेख को पढ़ें।

कान की मशीन कैसे काम करती है?

कान की मशीन में भी एक बाहरी माइक्रोफोन होता है जो ध्वनि को पकड़ता है। माइक्रोफोन डिजिटल प्रोसेसर और एम्पलीफायर को ध्वनि संकेत भेजता है। कान की मशीन का समयोजन (सेटिंग) ध्वनि के प्रवर्धन को नियंत्रित करता है। यह ध्वनि उपयोगकर्ताओं के बाहरी कान तक पहुँचती है। समयोजन यह सुनिश्चित करता हैं कि प्रवर्धन सुनने वाले उपयोगकर्ताओं के अनुकूल हो जिससे उनका बहरापन कम हो पाए। अधिक जानकारी के लिए, कान की मशीन के प्रकार पर हमारा लेख पढ़ें।

एक कॉकलियर इंप्लांट और एक कान की मशीन के बीच बुनियादी अंतर क्या है?

उपरोक्त संक्षिप्त विवरण दोनों श्रवण यंत्रों में प्रयुक्त विभिन्न विधि और प्रौद्योगिकी को बताता है।

कॉकलियर इंप्लांट में प्रोसेसर ध्वनि तरंगों को विद्युत संकेतों में परिवर्तित करता है। ये संकेत सीधे तारों और इंप्लांट इलेक्ट्रोड के जरिए आंतरिक कान तक पहुंचते हैं। ध्वनि संकेत बाहरी कान और मध्य कान को बायपास करते हैं।

जबकि, एक कान की मशीन ध्वनि संकेतों को बढ़ाती है और उन्हें बाहरी कान तक पहुँचाती है।

यह ऊपर दिए गए विवरण से स्पष्ट है कि हम एक उपकरण को दूसरे के साथ बदल नहीं सकते हैं। प्रत्येक श्रवण उपकरण का अपना अलग उपयोग और उद्देश्य है। कॉकलियर इंप्लांट या कान की मशीन में से सही विकल्प चुनना आप की ज़रूरत पर निर्भर करता है।

उपर्युक्त चर्चा का सारांश

बाहरी कान या मध्य कान में नुकसान या असामान्यता होने पर कॉकलियर इंप्लांट प्रभावित उपयोगकर्ता के लिए उपयुक्त है। असामान्यता, ध्वनि को आंतरिक कान तक पहुंचने से रोकती है। इसलिए ध्वनि संकेतों को सीधे आंतरिक कान तक पहुंचने की जरूरत है।

कॉकलियर इंप्लांट के लिए उम्मीदवार तय करने वाले कारक

कर्णावर्ती प्रत्यारोपण प्राप्त करने के लिए मानदंड निम्नलिखित हैं।

1. बहरेपन का प्रकार

अगर व्यक्ति गहन संवेदी बहरापन या सेंसरीन्यूरल बहरापन से पीड़ित है तो एक कान की मशीन मददगार नहीं होती है। गहन संवेदी बहरेपन के मामले में, कोक्लीअ की छोटी बाल कोशिकाएं क्षतिग्रस्त या गायब हो जाती हैं। इसलिए कान की मशीन द्वारा प्रवर्धन मदद नहीं करता है। बाल कोशिकाएं उन्हें विद्युत संकेतों में परिवर्तित करने में असमर्थ होती हैं।

2. कान की मशीन के साथ भाषण स्पष्ट नहीं है

जो लोग अत्यधिक श्रवण हानि या गहन बहरेपन से पीड़ित है उनके लिए आदर्श रूप से एक कान की मशीन कारगर होनी चाहिए। मगर भाषण की अस्पष्टता के कारण, कान की मशीन का उपयोग बहुत कम होता है। ऐसे में कॉकलियर इंप्लांट की जरूरत पड़ती है।

3. बहरेपन से पीड़ित व्यक्ति का आयु वर्ग

कान का डॉक्टर और ऑडियोलॉजिस्ट इस मानदंड पर भी विचार करते हैं। कॉकलियर इंप्लांट के माध्यम से प्राप्त ध्वनि संकेत कान की मशीन के माध्यम से प्राप्त ध्वनि संकेतों की तुलना में कम स्पष्ट होते हैं।

नए प्रकार की ध्वनि की आदत डालने के लिए रोगी को स्पीच थेरेपी (भाषण सुधार उपचार) से गुजरना पड़ता है। यदि मरीज बधिर होने से पहले भाषण से परिचित है तो यह प्रक्रिया बहुत आसान है। यदि रोगी ने पहले कभी भाषण नहीं सुना है, (जैसा कि नन्हे बच्चों या जन्मजात बहरे व्यक्ति के मामले में होता है) तो भाषण चिकित्सक को मूल रूप से भाषण थेरेपी शुरू करनी पड़ती है।

4. रोगी की सहायता प्रणाली

कॉकलियर इंप्लांट के संदर्भ में “लगाओ और भूल जाओ” यह उक्ति सही नहीं बैठती। कर्णावर्ती प्रत्यारोपण का उपयोग करने वाले व्यक्तियों को पोस्ट-ऑपरेटिव स्पीच थेरेपी (शल्य चिकित्सा के पश्चात भाषण सुधार उपचार) से गुजरना पड़ता है। स्पीच थेरपिस्ट (भाषण चिकित्सक) का पास होना जरूरी है। कई बार प्रति सप्ताह एक से अधिक थेरेपी सत्र की आवश्यकता होती है।

5. संचालन के बाद का खर्च

बैटरियों और जोड़ने वाले तारों जैसे सहायक उपकरण को नियमित अंतराल पर प्रतिस्थापन की आवश्यकता होती है। एक कान की मशीन के  सामान की तुलना में कॉकलियर इंप्लांट संबंधी सामान ज्यादा महंगे पड़ते है। रोगी या परिवार को नियमित खर्चों के बारे में पता होना चाहिए। भाषण थेरेपी सत्रों की लागत पर भी विचार करना चाहिए।

क्या वयस्कों में कॉक्लियर इम्प्लांटेशन करना उचित है?

एक बुजुर्ग कॉकलियर इम्प्लांट उपयोगकर्ता blog image
एक बुजुर्ग कॉकलियर इम्प्लांट उपयोगकर्ता

कॉकलियर इंप्लांट से लाभ पाने के इच्छुक व्यक्ति के लिए कोई उम्र का प्रतिबंध नहीं है। ध्यान में रखने के कारक हैं:

  • वृद्ध वयस्क दोनों कानों में मध्यम से गहन बहरेपन से पीड़ित हो।
  • कान की मशीन के उपयोग से कोई स्पष्ट लाभ नहीं हुआ हो।
  • ऑपरेशन (शल्य चिकित्सा) से गुजरने के लिए रोगी मानसिक और शारीरिक रूप से मजबूत होना चाहिए।
  • भविष्य में कॉकलियर इंप्लांट के रख-रखाव के बारे में ध्यान देना भी आवश्यक होता है।
  • जिन मरीजों में कर्णावर्ती प्रत्यारोपण जोखिम की संभावना हो उन्हें कॉकलियर इंप्लांट नहीं लगवाना चाहिए। उन्हें अन्य विकल्प खोजने की आवश्यकता है।

क्या बच्चों के लिए कॉकलियर इंप्लांट सलाह योग्य है?

एवी स्मिथ ने 3 साल की उम्र में कॉकलियर इम्प्लांट का इस्तेमाल शुरू कर दिया था blog image
एवी स्मिथ ने 3 साल की उम्र में कॉकलियर इम्प्लांट का इस्तेमाल शुरू कर दिया था

कान के डॉक्टर 3 महीने की उम्र से छोटे बच्चों का ऑपरेशन भी कर रहे हैं। यूनाइटेड किंगडम से एवी स्मिथ (Evie Smith) और मिसिसिपी से केडेंस लेन (Kadence Lane) दोनों लगभग 3 महीने के थे, जब उन्हें कॉकलियर इंप्लांट लगाया गया था।

जिन बच्चों को कॉकलियर इंप्लांट लगाया जाता है उनकी भाषा की समझ और उनकी भाषण योग्यता का विकास अच्छे से होता है। उनके पास सामान्य विद्यालयों में शामिल होने की संभावना अधिक है।

कान की मशीन का उपयोग किसे करना चाहिए?

  • यदि किसी व्यक्ति के पास कुछ अवशिष्ट श्रवण क्षमता है और वह रोजमर्रा की बातचीत करने में सक्षम हो तो उसकी पहली पसंद कान की मशीन होनी चाहिए।
  • कान की मशीन को संभालना सरल काम है। इस वजह से बुजुर्ग रोगियों के मामले में, कान की मशीन उचित विकल्प है।
  • कान की मशीन का रख-रखाव आसान और किफायती है।
  • बुजुर्ग मरीज जो सर्जरी (शल्य चिकित्सा) के पक्ष में नहीं हैं, उन्हें कान की मशीन का विकल्प चुनना चाहिए। ऐसे मरीजों में कर्णावर्ती प्रत्यारोपण जोखिम की संभावना होती है।

कॉकलियर इंप्लांट सर्जरी के तर्क-वितर्क के बारे में पढ़ें।

  • कॉकलियर इंप्लांट या कान की मशीन दोनों श्रवण यंत्रों के अपने अलग-अलग फायदे हैं। कॉकलियर इंप्लांट सर्जरी से पहले, कान का डॉक्टर, ऑडियोलॉजिस्ट और परिवार से संबंधित विस्तृत चर्चा करें।

यह एक महत्वपूर्ण निर्णय है, क्योंकि चिकित्सक के लिए  कॉक्लियर इम्प्लांटेशन सर्जरी के पश्चात पूर्वस्थिति को लौटाना संभव नहीं है।

कान की मशीन के इस्तेमाल से हिचकिचाना नहीं चाहिए। ये उपकरण बच्चों व युवाओं के भौतिक व मानसिक विकास की वृद्धि में अत्यंत मददगार हैं। बुजुर्गों के लिए ये उपकरण अच्छा सामाजिक जीवन जीने में सहायक हैं।

आप कॉकलियर इंप्लांट या कान की मशीन में से जो भी उपकरण चुनें, उसमें आप अपनी ज़रूरत को ध्यान में रखकर निर्णय लें।

श्रवण यंत्रों के माध्यम से आप स्वस्थ और सार्थक जीवन जी पायेंगे।

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